हर रात जब वो खिड़की पर छाया दिखती, मेरे रोंगटे खड़े हो जाते। मुझे लगता था, बस मेरे ही कमरे की खिड़की से एक अजीब दुनिया झांकती है — जहाँ डर की कोई हद नहीं। उस रात मैंने ठान लिया, अब इस रहस्य से पर्दा उठाऊँगा… चाहे कुछ भी हो जाए।”
किरदार
- वीर (मुख्य पात्र): कॉलेज में पढ़ने वाला, अकेला रहता है, नई जगह पर शिफ्ट हुआ है।
- फरहा: वीर की क्लासमेट, थोड़ी रहस्यमयी, आसपास की जगहों और दंतकथाओं में रुचि रखती है।
- दादी: पड़ोस की बूढ़ी औरत, सबको रहस्यमयी कहानियां सुनाती हैं।
- रहस्यमयी छाया: असली शक्ल कभी नहीं दिखती, बस खिड़की के पार दिखती है; इसका सच कहानी के क्लाइमैक्स में खुलता है।
कहानी की शुरुआत
वीर हाल ही में एक पुराने, बड़े से घर में शिफ्ट हुआ है। घर के सबसे आखिरी कमरे में, एक पुरानी-सी खिड़की है — उसी खिड़की से रात के वक्त कुछ अजीब-सी परछाई रोज दिखती है। वीर बाहर झांकता है तो झाड़ियों के पार किसी इंसान की हल्की हलचल दिखती है, मगर वो कभी सीधी नहीं दिखती, बस परछाई, जैसे किसी ने उसे खिड़की से जुड़ा रखा हो।
एक रात, वीर खिड़की पर टकटकी लगाए बैठा था, तभी किसी ने दरवाजा खटखटाया — फरहा आई थी। फरहा ने गाँव की पुरानी कथा सुनाई: यहां से कोई बच्चा ग़ायब हुआ था, उसकी आत्मा खिड़कियों से दिखती है। वीर को लगा, शायद ये सब पुराने मसले हैं — मगर खिड़की की परछाई हर रात तेज होती जा रही थी.
घटनाओं का सिलसिला
- वीर रात को बार-बार उठ जाता, खिड़की की ओर देखता — कभी कोई छोटी सी छाया, कभी बच्चे की हँसी।
- एक बार वीर ने फ़ोन में रिकॉर्डिंग ऑन कर दी, फ़ुटेज देखने पर सामने खड़े इंसान की जगह केवल खालीपन दिखा, मगर वीर को याद आया कि वो किसी से बात कर रहा था।
- दादी उसे बताती हैं: “उस खिड़की से दिखने वाला हर डर, असली हो सकता है — क्योंकि वहां एक अधूरी आत्मा है, जो इंसान नहीं… बल्कि अपने सच की तलाश में है।”
- रात-रात भर वीर का डर, परेशानियाँ और सपना एक-दूसरे में गडमड होने लगे। उसको लगता, खिड़की के उस पार कोई बहुत नाराज़ है।
- फरहा ने वीर को एक पुराना डायरी दिया, जिसमें बताया गया — कोई बच्चा बरसों पहले यहीं गायब हुआ था, जिसके माँ-बाप अब पागल हो चुके हैं।
क्लाइमेक्स और सस्पेंस
- एक दिन वीर ने ठान लिया कि वो खिड़की से बाहर जाएगा, सच सामने लाएगा।
- जैसे ही वो खिड़की के बाहर जाता है, मौसम तेज हो जाता है, अंधेरा घना — और आवाजें गूँजने लगती हैं।
- वीर को महसूस होता है कि यहाँ समय-अंतराल टूट चुका है — उसी बच्चे की आत्मा हर खिड़की से बाहर निकलने की कोशिश करती है, लेकिन बाहर कदम नहीं रख सकती।
- वीर खुद को उसी बच्चे के कमरे में पाता है, जहाँ दीवारों पर अजीब निशान, और एक पुरानी फोटो मिलती है — फोटो में वही छाया दिखाई देती है, मगर चेहरा वीर का है।
- फरहा उसे वापस खींच लाती है, मगर खिड़की अब हमेशा के लिए बंद हो चुकी है। वीर अब समझ पाता है — डर कभी भी बाहर नहीं जाता, वो हमेशा किसी न किसी के अंदर जीवित हो जाता है।
वीर की खिड़की आज भी बंद है — मगर, कभी-कभी सवेरे के वक्त, कोई परछाई पर्दे के पीछे से देखती है… क्या ये सब सिर्फ एक वहम था? या डर अब किसी और खिड़की के पार पहुँच चुका?
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